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नहाय-खाय के साथ आस्था का महापर्व छठ आज से शुरू

देहरादून। नहाय-खाय के साथ आस्था का महापर्व छठ की शुरूआत सोमवार यानी आज से हो गयी है। लोक आस्था और सूर्य उपासना के इस महापर्व को सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है, इस कारण यह पर्व छठ भी कहलाता है। इस पर्व पर छठ व्रती उगते और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी आराधना करती हैं। इस व्रत को साल में दो बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में में मनाया जाता है। बता दें कि कार्तिक मास में किए जाने वाले छठ की अधिक मान्यता है। वैसे तो यह त्योहार मुख्य तौर पर पूर्वांचल जैसे बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है लेकिन, आजकल और भी कई लोग इस पर्व को मनाने लगे हैं। राजधानी दून में भी विभिन्न स्थानों पर नहाय-खाय और छठ मइया का पूजन होगा।

चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि यानी की आज नहाय-खाय है। इस खास दिन छठ व्रती किसी नदी, तलाब के पास जाकर स्नान करती हैं और इसके बाद दिन भर में केवल एक बार ही सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। छठ के दूसरे दिन यानी पंचमी को खरना कहा जाता है। इस दिन छठ व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखती है और शाम को अरवा चावल की बनी खीर और रोटी छठी मईया को अर्पण करने के बाद उनका प्रसाद ग्रहण करती है। इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। जिसके बाद अपने घर के आस पास किसी भी पानी स्रोत्र के पास जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लोग इस दिन छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में जरूर चढ़ाते हैं। इसके बाद पूजा के आखरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर छठ पर्व का खत्म करती है। इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खत्म करती है। छठ पर्व के तहत मंगलवार को घाटों पर मुख्य छठ पूजा होगी।

छठ पूजा में पूजा सामग्री का विशेष महत्व होता है। इसमें साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि. बात दें कि सूर्य देव को छठ के दिन मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण की जाती है। छठी मैया की उपासना का महापर्व छठ में संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए निर्जला व्रत किया जाता है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में इस पूजा का विशेष महत्व है। देहरादून में भी बिहार के लोग इस पर्व को खासा उल्लास के साथ मनाते हैं। इस पर्व को लेकर टपकेश्वर, पथरी बाग, मालदेवता, चंद्रमनी, प्रेमनगर, पंडितवाड़ी, मद्रासी कालोनी, दीपनगर स्थित घाटों पर सफाई के बाद पूजा की जाती है।

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