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सिस्टम के मुंह पर तमाचा है मालदेवता में नदी घेरकर बने रिजॉर्ट!

बूझो तो जाने: रिजॉर्ट नदी में घुसे या नदी रिजॉर्ट में

  • देहरादून के प्रमुख पर्यटक स्थलों में शुमार मालदेवता में आलीशान रिजॉर्ट और होटलों की भरमार
  • देहरादून और टिहरी जिले के सीमावर्ती क्षेत्र सरखेत में आई भीषण आपदा के रौद्ररूप से उठे सवाल
  • बादल फटने से मालदेवता में बने रिजॉर्ट से होकर बहा नदी का पानी, कई की मौत और कई लापता

देहरादून। देहरादून और टिहरी जिले के सीमावर्ती क्षेत्र सरखेत में बीती 19 अगस्त की रात को आई भीषण आपदा ने सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा मारा है। इस आपदा में कई लोग काल कवलित हो गए तो कई लोग लापता हो गए। इस अप्रत्याशित आपदा के बाद सिस्टम नींद से जागा है और मामले में सभी रिपोर्ट की जांच करने की बात कह रहा है। सवाल यह है कि जब नदी को घेर कर ये तमाम रिपोर्ट बनाये जा रहे थे, तब यह सरकारी अमला कहां सोया हुआ था। इस बाबत स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत के नदी में घुसे रिजॉर्ट कैसे बन गये जबकि बिना अफसरों के सहमति के यहां कोई एक ईंट भी नहीं लगा सकता।
स्थानीय लोग आज भी इस आपदा को याद कर सिहर उठते हैं। यहां पर आपदा के निशान मौजूद हैं, जो उस खौफनाक मंजर को बयां कर रहे हैं। जब सरखेत में बादल फटा तो देहरादून के मालदेवता पर्यटक स्थल में बने तमाम आलीशान रिजॉर्ट नदी के प्रवाह को नहीं रोक पाये और नदी अपने रास्ते में बने सभी घर रिजाॅर्ट या अन्य भवनों से होकर बहने लगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि नदी रिजॉर्ट में घुसी है या रिजॉर्ट को जबरन नदी में घुसाया गया था। मालदेवता में आई भीषण आपदा के बाद का मंजर 20 अगस्त की सुबह दिल दहलाने वाला था। जिसमें सरखेत गांव के ऊपर बादल फटने से सैलाब आ गया। जिसमें घरों में सो रहे लोग जिंदा मलबे में दब गए। सैलाब सब कुछ रौंदता हुआ आगे बढ़ता गया और पहले ही जो नाले खाले उफान पर बह रहे थे तो बांदल नदी ने भी रौद्र रूप ले लिया।
जो भी इस सैलाब की चपेट में आया, वो ध्वस्त हो गया। बांदल नदी के किनारों को घेरकर बने रिजॉर्ट इसे छोटी नदी समझ कर इसके बहाव के रास्ते को संकरा करते गए। पिछले कई दशकों से बांदल नदी के किनारे दर्जनों व्यावसायिक होटल और रिजॉर्ट बना लिए गए। जिससे नदी की धारा संकरी और पतली होती गई। लोगों ने नदी तट को भी नहीं बख्शा। यहां पर भी निर्माण कर दिए। विडंबना यह रही कि पूरा सिस्टम सोता रहा और नदी को नाली बनाने का खेल जारी रहा। नदियों से सटे लग्जरी रिजॉर्ट का सबसे ज्यादा खौफनाक मंजर मालदेवता में देखने को मिला. यहां आपदा से पहले तमाम रिजॉर्ट पर्यटकों से भरे हुए थे, लेकिन जैसे ही रात को बादल फटा और नदी का पानी बढ़ा तो पर्यटकों को जान बचाने के लिए बाहर भागना पड़ा सुबह होते-होते ये तमाम रिजॉर्ट नदी के पानी से लबालब हो गए।
मालदेवता में बांदल नदी की चपेट में आए तमाम आलीशान होटलों को लेकर आज कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. जहां एक तरफ ग्रामीण इस प्राकृतिक आपदा के शिकार हुए तो वहीं दूसरी तरफ आलीशान होटलों में आई इस आपदा को मानव निर्मित आपदा करार दिया जा रहा है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि नदी के किनारे वाली जमीन को बीते लंबे समय से खुर्दबुर्द किया गया है. वहां पर कई तरह के व्यावसायिक निर्माण बनाए गए हैं, जो कि मानकों की धज्जियां उड़ाकर बनाये गये हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई साल पहले नदी की धारा जिस जगह पर बहती थी, आज उसी जगह से वापस बहने लगी है। जिन लोगों ने नदी के हिस्से में निर्माण किया है, उन्हें आज नदी ने ही नष्ट कर दिया है। ऐसे में साफ है कि इंसानों ने नदी की भूमि में अपने आशियाने बनाए हैं. जो भी मालदेवता के आसपास के बड़े रिजॉर्ट नदी का ही अभिशाप झेल रहे हैं। इतने सारे रिजॉर्ट नदी में घुसकर उसके प्रवाह के इतने नजदीक कैसे बनाए गए कि इन पर तमाम सवाल उठ रहे हैं।
नदियों के किनारे होने वाले इस तरह के व्यावसायिक निर्माण हमेशा से ही मुसीबत का सबब बने हैं। यह खाली मालदेवता में बांदल नदी के किनारों का ही नहीं है। राजधानी देहरादून के बीचोंबीच बिंदाल और रिस्पना नदी का हाल देख लीजिये। कभी 12 महीनों कल कल कर बहने वाली सदानीरा नदियों का हाल गंदे नालों से भी बदतर कर दिया गया है। इनके किनारों पर अतिक्रमण कर बनाई गई झुग्गियों और झोपड़ीनुमा घरों को बसाने के पीछे सभी पार्टियों और स्थानीय नेताओं की क्या भूमिका है, यह सब जानते हैं। वोट बैंक के खेल ने पूरे शहर को स्लम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
नियमों की अगर बात की जाए तो प्रशासनिक अधिकारी बताते हैं कि नदी बाढ़ क्षेत्र प्रबंधन अधिनियम यानी रिवर फ्लड एरिया कंट्रोल एक्ट के तहत नदियों के चिन्हित बाढ़ क्षेत्र से 30 मीटर दूर ही किसी तरह का निर्माण किया जा सकता है। उत्तराखंड में गंगा और गंगा की सहायक नदियों को लेकर एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइन है। जिनमें कई जगहों पर निर्माण की दूरी 200 मीटर तक रखी गई है। इसके अलावा अलग-अलग जगहों पर टाउन प्लानर और मास्टरमाइंड में भी नदियों से दूर होने वाले व्यावसायिक व आवासीय निर्माण को लेकर परिभाषाएं दी गई हैं। लेकिन वे सब फाइलों के ढेर में दफन है। फिर यही सवाल उठता है कि जब ये अवैध निर्माण हो रहे होते हैं तो जिम्मेदार विभाग और अधिकारी कहां सोये होते हैं जिनको सिर से पानी गुजर जाने के बाद अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है। उन पर कार्रवाई कौन करेगा, जब पूरी दाल ही काली है।
वहीं कमिश्नर गढ़वाल सुशील कुमार ने बताया कि कई जगहों पर उच्च न्यायालय की ओर से भी सीधे डायरेक्शन दिए गए हैं कि नदी श्रेणी भूमि से दूर निर्माण कार्य होने चाहिए। इसके बावजूद अगर नदी क्षेत्र में निर्माण कार्य हुए हैं तो उसको लेकर कार्रवाई की जाएगी। इस बात पर वह भी कन्नी काट गये कि जब ये तमाम अवैध निर्माण कार्य किये जा रहे थे तो उस समय ही कार्रवाई क्यों नहीं की गई। हालांकि मालदेवता पर्यटक स्थल और बांदल नदी के किनारे मौजूद होटलों को लेकर शासन प्रशासन का कहना है कि जल्द ही इन व्यावसायिक निर्माण को लेकर सर्वे किया जाएगा। इसके लिए एक पूरी ड्राइव चलाई जाएगी. जिसमें देहरादून और आसपास नदी क्षेत्र में बनाए गए व्यावसायिक निर्माण को लेकर सर्वे किया जाएगा। यदि कोई अवैध पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन जैसा आज तक होता आया है, वही होगा यानी दो चार महीनों में मामला शांत होने के बाद ये रिजाॅर्ट ध्वस्त नहीं किये जाएंगे बल्कि फिर गुलजार दिखेंगे। कब तक यानी अगली आपदा आने तक।

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