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देहरादून : भारी न पड़ जाये ‘मास्क-फ्री’ का चलन!

  • वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एनएस बिष्ट ने कहा, अन्य शहरों की तुलना में देहरादून में मास्क का चलन सबसे कम

देहरादून। कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए लॉकडाउन के अलावा सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने जैसे जिन नियमों को हमने अपनी दिनचर्या में शामिल किया था, आज कोरोना के मामले कम होने पर अब अधिकतर लोग इन नियम का उल्लंघन करते नजर आते हैं। बेफिक्री का आलम यह है कि खुद स्वास्थ्यकर्मियों और जिम्मेदार अफसरों ने भी इन नियमों का पालन करना छोड़ दिया है। बीते दिनों त्योहारी सीजन में जिस हिसाब से बाजारों में भीड़ उमड़ी है, ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ा है। दूसरी लहर भी बाजारों में भीड़ बढ़ने की वजह से ही आई थी। जिसने न जाने कितनी जिंदगियों को लील लिया।

कोरोना के पहले पीक बीत जाने पर भी चिकित्सकों ने इसके दूसरे चरण का पीक यानी कोरोना और खतरनाक तरीके से वापस आने को लेकर चेतावनी दी थी। बावजूद इसके लोगों ने लापरवाही बरती और नतीजा किसी से छुपा नहीं है। कोई भी वैश्विक महामारी दो से तीन चरणों में आती है। देश में कोरोना वैश्विक महामारी का दूसरा पीक भी बीत चुका है, वहीं मास्क के प्रति लापरवाही बरतना घातक साबित हो सकती है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यूरोप है जहां कोरोना के मामलों में वृद्धि का कारण टीकाकरण की मंद चाल और मास्क-फ्री जीवनचर्या को माना जा रहा है। यूरोप में जारी कोरोना संक्रमण की स्थिति उत्तराखंड जैसी पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था के लिए आंख खोलने वाली बात है। विशेषकर तब जबकि राज्य में शीतलहर के साथ-साथ चुनावी लहर सामने है। और कोरोना की दोनों खुराक लेने वालों का अनुपात सिर्फ एक तिहाई है यानी कि 35% के लगभग।

इस बाबत वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एनएस बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड में मास्क का चलन इस समय न्यून स्तर पर है। वहीं राज्य के अन्य शहरों की तुलना में देहरादून में मास्क का चलन सबसे कम है। कोविड-19 संक्रमण की आशंका उत्तराखंड में अन्य प्रदेशों की तुलना में ज्यादा है। इसकी वजह है धार्मिक व प्राकृतिक पर्यटन के साथ ठंड के मौसम में वायरस की प्रसार क्षमता में होने वाला बदलाव। ठंड के मौसम में स्मॉग छाने लगता है। और यह सांस की बीमारी बढ़ाने वाला साबित होता है। स्मॉग के चलते होने वाली सांस की बीमारी और कोरोना दोनों मिलकर घातक साबित हो सकते हैं। जबकि स्मॉग से होने वाली खांसी और सांस की बीमारी भी कोरोना से मिलती जुलती है। वहीं कोरोना वायरस ठंड और कम नमी में हवा में देर तक टिकता है। ऐसे में बिना मास्क के घूमना वायरस को फैलने में मदद करता है।

इस रोग का अध्ययन बताता है कि कोरोना का वायरस शुरुआत में नाक और गले में पनपता है, जिस दौरान व्यक्ति को किसी प्रकार के लक्षण नहीं होते। संक्रमित, मगर लक्षणरहित व्यक्ति मास्क नहीं पहने होने सांस लेने और बात करने के दौरान बनने वाले वात कणों के माध्यम से संक्रमण दूसरों में फैल सकता है। ऐसे में मास्क का उपयोग न करना कोरोना की तीसरी लहर को दावत दे रहा है।

गौरतलब है कि 15 मार्च 2020 को उत्तराखंड में कोरोना का पहला मामला सामने आया था। पहली लहर में उत्तराखंड को कुछ ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा, लेकिन दूसरी लहर के घात के साथ ही मामलों की संख्या एक लाख के पार जा पहुंची। वर्तमान में लगभग 3.5 लाख के आसपास मामले हो चुके हैं। हालांकि विगत कुछ महीनों से कोरोना संक्रमण दहाई अंकों के न्यूनतम पायदान पर सिमटा हुआ है, लेकिन अभी भी हम मास्क-फ्री नहीं हुए हैं जैसा कि सार्वजनिक जीवन में देखने में आ रहा है।

डॉ. एनएस बिष्ट का कहना है कि मास्क पहनने के प्रति उदासीन लोगों को दूसरे लहर की भयावहता अवश्य याद करनी चाहिए। जिन्होंने अपनों को नहीं खोया उनके आसपास वो परिचित अवश्य होंगे जो लगातार फेफड़ों के सिकुड़ने की बीमारी से जूझ रहे हैं। मास्क अत्यंत छोटा और सहज कपड़ा है। हेलमेट की भांति बोझिल नहीं। मास्क की स्वीकार्यता सिर्फ कोरोना नहीं बल्कि कई प्रकार के स्वांस रोगों का प्रतिरोध कर सकती है। मास्क एक सामाजिक दायित्व भी है- दूसरों को स्वयं से सुरक्षित रखना। मास्क के सामाजिक मायने हेलमेट की निजी सुरक्षा से अलग हैं। यहां एक नितांत निजी दुर्घटना अपनों और दूसरों को जानलेवा आघात दे सकती है। एक सामाजिक विकार को जन्म दे सकती है।

उन्होंने कहा कि अब पूरी तरह से सावधानी बरतने का वक्त है। वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले भी संक्रमित हो रहे हैं। साथ ही बीमारी भी फैला सकते हैं। हालांकि वैक्सीन लेने से बीमारी की गंभीरता कम होगी, और मरीजों की जान नहीं जाएगी, लेकिन सावधानी बरतनी बेहद जरूरी है। देश के कई राज्यों में अचानक मरीजों की संख्या बढ़ने से हालात बिगड़ सकते हैं, ऐसे में भीड़ से बचने, सर्जिकल मास्क पहनकर घूमने, अस्पतालों में जाएं तो एन-95 मास्क लगाएं, हाथों को बार बार धोने और सैनिटाइजर करते रहें, खांसने के दौरान मुंह पर रुमाल या मास्क रखें, एक दूसरे से पांच फुट की दूरी बनाकर रखें और अपने खानपान में हाई प्रोटीन को शामिल करें।

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