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दोनों राजकुमारियों को मिली 20 हजार करोड़ की संपत्ति!

फरीदकोट के राजा की संपत्ति का मामला  

  • राजा हरिंदर सिंह बराड़ की संपत्ति से जुड़ा है पूरा विवाद
  • निचली अदालत के फैसले पर हाईकोर्ट ने लगाई अपनी मुहर
  • 547 पन्ने में लिखा फैसला, कुछ हिस्सा महारानी के नाम भी

चंडीगढ़। फरीदकोट के राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 20 हजार करोड़ से अधिक की प्रॉपर्टी पर अब राजकुमारी अमृत कौर व दीपइंदर कौर का मालिकाना हक होगा। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए उस पर मुहर लगा दी है। हालांकि अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कुछ हिस्से पर दोनों राजकुमारियों की माता महारानी महिंदर कौर का हक़ भी माना है।
अपने 547 पन्ने के आदेश में जस्टिस राज मोहन सिंह ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अमृत कौर, दीपइंदर कौर और महरावल खेवाजी ट्रस्ट द्वारा दायर सभी अपीलों को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महाराजा की मृत्यु के समय महारानी महिंदर कौर जीवित थी ऐसे में इस संपत्ति में वह भी हिस्सेदार हैं। बावजूद इसके ज्यादातर हिस्सा दोनों बेटियों को ही मिलेगा। महारानी अब जीवित नहीं हैं तो निश्चित ही उनके नाम आने वाला हिस्सा उनके द्वारा तय किए गए वारिसों को दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने निचली अदालत इसे उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमे महारावल खेवाजी ट्रस्ट को सारी संपत्ति सौंपे जाने की वसीयत को फर्जी बताया था और इस अब हाईकोर्ट ने भी इस ट्रस्ट को अवैध करार दे दिया है।
राजा की फरीदकोट में बेशकीमती प्रॉपर्टी है। इसके अलावा चंडीगढ़ में मनीमाजरा का किला, एक होटल साइट समेत दिल्ली और हिमाचल में राजा की काफी प्रॉपर्टी है। राजा की कुल प्रॉपर्टी 20 हजार करोड़ से अधिक बताई जा रही है। हाईकोर्ट ने अब इसमें से 25 प्रतिशत हिस्सा महारानी महिंदर कौर को भी दे दिया है, वही बाकी बची 75 प्रतिशत संपत्ति का आधा-आधा राजकुमारी अमृत कौर और दीपइंदर कौर को मिलेगा।
प्रॉपर्टी के हक को लेकर सीजेएम कोर्ट ने 25 जुलाई 2013 को आदेश देते हुए दोनों बहनों को बराबर वारिस माना था। इस फैसले को एडीजे के समक्ष चुनौती दे दी गई और एडीजे ने फरवरी 2018 को इस अपील को खारिज कर दिया और सीजेएम के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 1982 में बनाई गई वसीयत को अवैध ठहरा दिया गया था।
सीजेएम ने अपने आदेश में राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 1982 में बनाई गई वसीयत को अवैध ठहराते हुए राजा की बेटियों राजकुमारी अमृत कौर और राजकुमारी दीपइंदर कौर को संपत्ति पर बराबर का मालिकाना हक दिया था। साथ ही ट्रस्ट को अवैध करार दिया था। इस ट्रस्ट की चेयरपर्सन दीपइंदर कौर थी।
निचली अदालत के इसी फैसले के खिलाफ राजकुमारी अमृत कौर, महारानी दीपइंदर कौर, भरत इंदर सिंह ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर चुनौती दे दी थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए निचली अदालत के आदेशों पर रोक लगा दी थी। दीपेंदर कौर की ओर से दायर अपील में कहा था कि उनके पिता की वसीयत के अनुसार उनकी सारी संपत्ति को महरावल खेवाजी ट्रस्ट को सौंप दिया गया था। साथ ही इस ट्रस्ट का चेयरपर्सन उसे बनाया था।
इस लिहाज से वसीयत के अनुसार राजकुमारी अमृत कौर का इस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। अपील में यह भी बताया गया था कि अभी राजकुमारियों की मां जिंदा हैं और ऐसे में अगर वसीयत को अवैध भी करार दे दिया जाता है तो भी इस संपत्ति पर मां का हिस्सा भी बनता है जिसके बारे में जिला अदालत ने अपने आदेशों में कोई जिक्र तक नहीं किया। अब हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेशों को बरक़रार रखते हुए ट्रस्ट को अवैध करार दे दिया है लेकिन साथ ही अब मां को भी इस संपत्ति में हक़दार माना है।

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