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सड़े सिस्टम के चलते यूपी में राज कर रहे माफिया!

यूपी के 5 बड़े माफिया की कहानी

  • इन पर हत्या, लूट और वसूली के 200 से ज्यादा मामले दर्ज
  • कोई 5 बार विधायक रहा तो कोई 24 साल से लगातार जीत रहा चुनाव
  • मुख्तार अंसारी पर 40 केस दर्ज हैं,दोनों बेटे करोड़पति हैं, भाई अफजाल सांसद
  • बदन सिंह बद्दो पर 2.5 लाख का इनाम घोषित, गत 15 माह से है गायब

लखनऊ। सड़े सिस्टम की बदौलत थाने में राज्यमंत्री की हत्या करने वाले विकास दुबे के खिलाफ उस समय सात दारोगा ओर 25 पुलिस वाले चश्मदीद गवाह थे, लेकिन सभी गवाही से मुकर गये और वह बरी हो गया। ताजा घटनाक्रम से पहले चौबेपुर के थानेदार सहित पूरा थाना विकास के तलवे चाटता रहा है। अब 8 पुलिस वालों की हत्या करने के बाद विकास दुबे फरार है और एसटीएफ समेत यूपी पुलिस की 100 टीमें विकास दुबे की तलाश कर रही है। इस बीच यूपी सरकार ने 33 अपराधियों की लिस्ट जारी की है। जिसमें कई माफिया और बाहुबली शामिल हैं।
हम आपको यूपी के कुछ ऐसे ही माफिया की कहानी बता रहे हैं। जिन्होंने न सिर्फ क्राइम की दुनिया में अपना खौफ जमाया बल्कि सत्ता के गलियारों में भी अपना रसूख कायम रखा है।
1. बदन सिंह बद्दो : 6 पुलिसकर्मियों को शराब पिलाकर हो गया था फरार
मेरठ जोन के कुख्यात अपराधी बदन सिंह बद्दो पर 2.5 लाख का इनाम घोषित है। पिछले 15 महीने से पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिल पाया है। दरअसल 28 मार्च 2019 को पूर्वांचल की जेल से उसे गाजियाबाद कोर्ट में पेशी के ले जाया जा रहा था। तब उसने भागने के लिए प्लान बनाया और कथित तौर पर पुलिसकर्मियों से साठ-गांठ की। जब पुलिस रास्ते में मुकुट महल होटल में खाने के लिए रुकी तो बद्दो ने 6 पुलिसकर्मियों को शराब पिलाकर नशे में धुत कराने में कामयाब रहा। इसके बाद वहां से एक लग्जरी कार में भाग निकला, उसके गैंग ने पहले से इंतजाम कर रखा था। इस मामले में 6 पुलिसकर्मी सहित 18 लोग जेल जा चुके हैं।
मेरठ जोन के कुख्यात अपराधी बदन सिंह बद्दो को 31 अक्टूबर 2017 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन कुछ महीने जेल में रहने के बाद फरार हो गया। बद्दो को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने लुक आउट नोटिस जारी किया था। लेकिन पुलिस के हाथ वह नहीं लगा। इसके बाद 28 मार्च 2020 को फिर से लुक आउट नोटिस की अवधि को आगे बढ़ाया गया। बद्दो पर करीब 40 अन्य मामले दर्ज हैं। इनमें फिरौती वसूलने से लेकर हत्या और हत्या की कोशिश, अवैध हथियार रखने और उनकी आपूर्ति करने, बैंक डकैती जैसे मामले शामिल हैं।

बद्दो के पिता 1970 में पंजाब से मेरठ आए थे और वहां ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया। बद्दो भी पिता के काम से जुड़ गया। सात भाइयों में सबसे छोटा बद्दो यहीं से अपराधियों के संपर्क में आया और उसने क्राइम की दुनिया में कदम रखा। 80 के दशक में वह मेरठ के मामूली बदमाशों के साथ मिलकर शराब की तस्करी किया करता था। इसके बाद वह पश्चिमी यूपी के कुख्यात गैंगस्टर रवींद्र भूरा के गैंग में शामिल हो गया।
बद्दो पर सबसे पहले 1988 में हत्या का मामला दर्ज किया गया। उसने व्यापार में मतभेद होने पर राजकुमार नामक एक व्यक्ति को दिनदहाड़े गोली मार दी थी। हालांकि उसका क्राइम की दुनिया में नाम तब हुआ जब उसने 1996 में वकील रवींद्र सिंह हत्या कर दी। इसी केस में 31 अक्टूबर 2017 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन वह महज 17 महीने बाद ही जेल से फरार हो गया और अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।
2. अतीक अहमद : 10 जजों ने उसके केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था
पूर्व सांसद अतीक अहमद पिछले तीन सालों से जेल में बंद है। अतीक के खिलाफ 83 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। उसके भाई अशरफ को मिला दें तो दोनों पर 150 से ज्यादा केस हैं। उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद के साथ ही बिहार में भी हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के मामले दर्ज हैं। क्राइम की दुनिया में कदम रखने के बाद अतीक ने राजनीति में भी खुद को अजमाया और एक के बाद एक चुनाव भी जीते। पूर्व सांसद अतीक अहमद पिछले तीन सालों से जेल में बंद है।
अतीक ने सबसे पहले 1989 में इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर विधायक बना। उसने पांच बार विधायक के तौर पर और एक बार यूपी के फूलपुर से सांसद के तौर पर जीत दर्ज की। अतीक ने निर्दलीय उम्‍मीदवार के रूप में राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी लेकिन, बाद में सपा जॉइन कर ली। इसके बाद अपना दल में शामिल हो गया।

अतीक के पिता इलाहाबाद (प्रयागराज) में तांगा चलाते थे। साल 1979 की बात है, अतीक दसवीं में फेल हो गया और उसके बाद से वह गलत संगत में आ गया। अतीक को अमीर बनने का चस्का लग गया और वह रंगदारी, वसूली करने लगा। 17 साल की उम्र में अतीक पर हत्या का आरोप लगा। इसके बाद उसने वापस मुड़ कर नहीं देखा और जल्द ही गैंगस्टर की लिस्ट में शामिल हो गया।
वर्ष 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए। 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या। सभी का आरोप अतीक पर लगा। लोग कहते हैं कि जो भी उसके खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता है, वह मारा जाता है।
वर्ष 2012 में यूपी में विधानसभा का चुनाव था। तब अतीक जेल में बंद था और चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया। लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक को बेल मिल गयी। हालांकि अतीक चुनाव हार गया। राजू पॉल की पत्नी पूजा पॉल ने उसे हरा दिया।
3. मुख्तार अंसारी : लगातार पांच बार विधायक और 15 सालों से जेल में
यूपी में अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी एक बड़ा नाम है। उसे बाहुबली नेता के रूप में जाना जाता है। मुख्तार लगातार पांच बार से विधायक है और पिछले 15 सालों से जेल में बंद है। उस पर मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसे मामलों में 40 से ज्यादा केस उसके खिलाफ दर्ज हैं। उसकी दबंगई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह जेल में रहते हुए भी चुनाव जीतता है और अपने गैंग को भी चलाता है।
मुख्तार का जन्म यूपी के गाजिपुर जिले में हुआ था। उसके दादा इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तो पिता कम्युनिस्ट नेता थे। मुख्तारी को छात्र जीवन से ही दबंगई पसंद थी। 1988 में मुख्तार का नाम पहली बार हत्या के एक मामले से जुड़ा। हालांकि सबूतों के अभाव में वह बच निकला। इसके बाद 90 के दशक आते-आते वह ज़मीन के कारोबार और ठेकों की वजह से पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में अपनी पैठ बना चुका था। 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से भी अंसारी का नाम जुड़ा था।

इसके बाद 1996 में मुख्तार ने पहली बार राजनीति की दुनिया में कदम रखा और यूपी की मऊ सीट से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद पूर्वांचल में मुख्तार की तूती बोलने लगी। जिसके बाद एक दूसरे गैंगस्टर ब्रजेश सिंह ने मुख्तार के काफिले पर हमला कराया लेकिन वह बच निकला। यह भी कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए ब्रजेश सिंह ने लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपए की सुपारी दी थी। इसका खुलासा लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था।
अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़की हिंसा के बाद मुख्तार ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। तभी से वो जेल में बंद हैं। मुख़्तार पर आरोप है कि वो गाजीपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में सैकड़ों करोड़ रुपए के सरकारी ठेके आज भी नियंत्रित करता है। मुख्तार के दो बेटे हैं और दोनों ही करोड़पति हैं। उसका भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद है।
4. बृजेश सिंह – पिता की हत्या का बदला लेने के लिए 6 लोगों को उतार दिया मौत के घाट
बृजेश सिंह पूर्वांचल का हिस्ट्रीशीटर माफ़िया है। वह अभी वाराणसी से निर्दलीय एमएलसी है। उस पर 30 से ज़्यादा संगीन मामले दर्ज हैं। गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से लेकर, दंगा-बवाल भड़काने, जमीन हड़पने जैसे मामले दर्ज हैं। साल 2000 में कई सालों तक फरार रहे बृजेश पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया था।
बनारस के धरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह का नाम 1984 में पहली बार हत्या से जुड़ा। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उसने हथियार उठाया और अपने पिता के कथित हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद वह फरार हो गया और उन लोगों की तलाश करने लगा जो उसकी पिता की हत्या में शामिल थे। 1986 में बनारस के सिकरौरा गांव में उसने एक साथ पांच लोगों को गोलियों से भून डाला।

इसके बाद बृजेश को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहने के दौरान बृजेश की पहचान कई अपराधियों से हुई और क्राइम का उसका धंधा फलने- फूलने लगा। 1996 में बृजेश के निशाने पर मुख्तार अंसारी आ गया। दोनों में एक दूसरे को दबाने की जंग छिड़ गई। 2003 में कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और हत्याकांड में मास्टरमाइंड के तौर पर बृजेश का नाम आया।
बृजेश का नाम गैंगस्टर और डॉन के तौर पर तब उभरा जब जेजे अस्पताल शूटआउट में उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। हालांकि सबूतों के अभाव में वह बच निकला। 2008 में बृजेश सिंह को उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया था। अब वो जेल में बंद हैं। वाराणसी की एमएलसी सीट पर बृजेश और उसका परिवार पिछले 4 बार से जीतता रहा है।
5. धनंजय सिंह : दो बार विधायक, एक बार सांसद, 40 से ज्यादा मामले दर्ज
धनंजय सिंह पूर्वांचल का बाहुबली माना जाता है। उस पर लगभग 40 आपराधिक मामले दर्ज हैं। धनंजय सिंह ने दो बार विधानसभा और एक बार लोकसभा का चुनाव जीता है। धनंजय सिंह ने छात्र राजनीति से ही अपनी पहचान एक बाहुबली नेता के रूप में बनाने की कोशिश की। जल्द ही लखनऊ के हसनगंज थाने में उस पर हत्या और सरकारी टेंडरों में वसूली से जुड़े आधा दर्जन केस दर्ज हो गए।
धनंजय सिंह ने 2009 में बसपा के टिकट पर जौनपुर से सांसद का चुनाव जीता। हालांकि 2014 में उसे हार का सामना करना पड़ा। 1998 तक धनंजय सिंह के खिलाफ 12 मामले दर्ज हो चुके थे साथ ही 50 हजार का इनाम भी घोषित था। उसने तीन शादियां की है। पहली पत्नी ने शादी के 9 महीने बाद ही सुसाइड कर लिया। दूसरी पत्नी से उसका तलाक हो गया। इसके बाद 2017 में तीसरी शादी की।

धनंजय सिंह 27 साल की उम्र में 2002 में रारी (अब मल्हनी) विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीता। इसके बाद उसने दोबारा इसी सीट पर जेडीयू के टिकट से जीत दर्ज की। इसके बाद धनंजय सिंह बसपा में शामिल हो गए। 2009 में बसपा के टिकट पर जौनपुर से सांसद का चुनाव जीता। हालांकि 2014 में उसे हार का सामना करना पड़ा।
ये तमाम माफिया इस सड़े सिस्टम की बदौलत राज करते रहे हैं क्योंकि जेल में रहकर भी इनका ‘राज’ बेरोकटोक चलता रहता है और ये वहीं से चुनाव भी जीतते रहते हैं। 

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