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आज भारत आएंगे रूसी राष्ट्रपति पुतिन, पीएम मोदी को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम का मॉडल करेंगे गिफ्ट

मॉस्को/नई दिल्ली
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोमवार को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं। कोरोनाकाल के बाद पुतिन की पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत का चुनाव करने से बड़े-बड़े कूटनीतिक पंडितों के भी कान खड़े हो गए हैं। पुतिन भारत पहुंचने के बाद कुछ घंटों में ही तबाड़तोड़ बैठकें करने के बाद वापस रूस रवाना हो जाएंगे। उनकी इस यात्रा के ठीक पहले रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम की दो यूनिट भारत के लिए भेजा जा चुका है। अमेरिका और चीन दोनों इस मिसाइल सिस्टम की डील को लेकर चिढ़े हुए हैं। इतना ही नहीं, पुतिन के भारत यात्रा के दौरान करोड़ों डॉलर की कामोव केए-226टी हेलिकॉप्टर, एके-203 राइफल, इग्ला मैन पोर्टेबल मिलाइल लॉन्चर की डील को भी मंजूरी दी जा सकती है।

पुतिन का दौरा चीन के लिए सख्त संदेश
व्लादिमीर पुतिन ने कोविड के बाद अपनी पहली इन पर्सन यात्रा के लिए भारत को चुना है। इससे पहले वे जो बाइडेन के साथ शिखर वार्ता के लिए जिनेवा गए थे, लेकिन वह स्विट्जरलैंड की आधिकारिक यात्रा नहीं थी। पुतिन यह भी दिखाना चाह रहे हैं कि चीन के साथ रूस के संबंध मजबूत हो रहे हैं तो इसका असर भारत के साथ रिश्तों पर नहीं पड़ेगा। लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक भारत से उलझे चीन को पुतिन की भारत यात्रा से एक संदेश भी मिल रहा है। इसी साल अगस्त में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष होने के नाते मैरिटाइम सिक्योरिटी पर बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर पुतिन खुद शामिल हुए।

भारत-रूस की दोस्ती मौका परस्त चीन को झटका
शीतयुद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका के खिलाफ चीन और रूस के संबंध काफी तेजी से मजबूत हुए। रूस के साथ भारत का संबंध चीन के लिए भी एक इशारा होगा कि उसके पास एशिया में एक और ऑप्शन है। दोनों देशों के संबंधों को मौकापरस्ती का नाम दिया जा सकता है, क्योंकि अमेरिका के खिलाफ ही रूस और चीन नजदीक आए। दोनों देशों के बीच लंबे समय तक सीमा विवाद रहा है। शीत युद्ध के दौरान भी रूस और चीन ने अलग-अलग दिशाओं में काम किया था। ऐसे में रूस जानता है कि चीन मौका पाकर कभी भी पलटी मार सकता है।

एस-400 तो चीन के पास भी, फिर परेशानी क्यों?
चीन ने 2014 में ही रूस के एस-400 मिसाइल सिस्टम की छह बैटरियों की खरीद की थी। उसे एस-400 की डिलीवरी 2018 में शुरू की गई थी। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन ने अपने एस-400 मिसाइल सिस्टम को भारत सीमा पर भी तैनात किया हुआ है। लेकिन, भारत को मिलने वाला एस-400 मिसाइल सिस्टम, चीन वाले सिस्टम से ज्यादा अडवांस और लंबी दूरी का है। इसका प्रमुख कारण एक अंतरराष्ट्रीय संधि मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) है। भारत इस संधि का सदस्य है, जबकि चीन नहीं। ऐसे में कोई भी देश गैर सदस्य देशों को 300 किलोमीटर से ज्यादा रेंज की मिसाइलों को नहीं बेंच सकते हैं। इसलिए रूस ने भारत को चीन से ज्यादा रेंज के सिस्टम को सौंपा है।

पुतिन की भारत यात्रा से अमेरिका को क्या नुकसान?
इंडो-पैसिफिक दुनियाभर की महाशक्तियों के लिए जोर आजमाइश का केंद्र बना हुआ है। रूस और अमेरिका दोनों ही इस इलाके में अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, दोनों ही देश बिना भारत की मदद के अपने सपने को पूरा नहीं कर सकते हैं। ऐसे में अमेरिका यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर भारत रूस के साथ नेवल बेस को इस्तेमाल करने की संधि को फाइनल कर देता है तो इससे अमेरिकी हितों को नुकसान हो सकता है। इतना ही नहीं, अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक है और भारत सबसे बड़ा खरीदार। अगर भारत रूस के साथ कई दूसरे तरह के हथियारों की डील करता है तो इससे अमेरिकी डिफेंस मार्केट को बड़ा नुकसान पहुंचेगा। इतना ही नहीं, इस डील से रूस को भारी मात्रा में पैसा भी मिलेगा, जिसे वह अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है।

काट्सा कानून से भारत को डरा रहा अमेरिका
रूस के साथ एस-400 मिसाइल सिस्टम की डील को लेकर अमेरिका ने कई बार दबी जबान ने भारत को काट्सा के तहत प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी है। इस साल भारत दौरे पर पहुंचे अमेरिका के रक्षा मंत्री जनरल लॉयड जे ऑस्टिन से जब एस-400 को लेकर प्रतिबंधों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा था कि जिस हथियार की अभी तक डिलीवरी नहीं हुई, उसपर कैसा प्रतिबंध। लेकिन, अब एस-400 की डिलीवरी शुरू हो गई है। ऐसे में अमेरिका CAATSA Act के जरिए भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है।

अमेरिकी सैन्य अधिकारी भी बाइडेन प्रशासन को दे रहे नसीहत
अमेरिकी सेना के इंडो-पैसिफिक कमांड के चीफ एडमिरल जॉन एक्वीलिनो ने भारत रूस के संबंधों को लेकर यूएस कांग्रेस को खरी-खरी सुना चुके हैं। उन्होंने अपने नाम की पुष्टि के लिए यूएस कांग्रेस में हो रही सुनवाई के दौरान कहा था कि अमेरिका को यह समझने की जरूरत है कि सुरक्षा सहयोग और सैन्य साजो सामान के लिए भारत के रूस के साथ पुराने संबंध हैं। उन्होंने रूस से भारत के एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर भी प्रतिबंधों को न लगाने की वकालत की थी। एडमिरल जॉन एक्वीलिनो ने कहा कि वह हथियारों को खरीदने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लेने के बजाय भारत को रूस से दूर करने की कोशिश करेंगे। एक्वीलिनो ने कहा कि मुझे लगता है कि यह फैसला मैं नीति निर्माताओं पर छोड़ दूंगा। मुझे लगता है कि हमें यह समझना चाहिए कि हम भारत के साथ कहां खड़े हैं और मुझे लगता है कि विकल्प उपलब्ध कराने का कदम ज्यादा बेहतर है।

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