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सोशल मीडिया प्लेटफार्म की पहुंच को देखते हुए अंकुश को कानून बनाने की मांग

नई दिल्ली-सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना एवं न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने केंद्र और अन्य को वकील विनीत जिंदल की याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को केंद्र व अन्य को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह सोशल मीडिया मंचों के जरिए नफरत फैलाने वाली सामग्रियां एवं फर्जी समाचारों का प्रसार करने में संलिप्त लोगों के खिलाफ अभियोजन चलाने के लिए कानून बनाए। याचिका में प्राधिकारियों को एक ऐसा तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई है, जिससे कम समय सीमा के भीतर फर्जी समाचार और नफरत फैलाने वाली सामग्री स्वतः हट जाएं। इसमें कहा गया कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक जटिल अधिकार है। इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं और इससे कुछ विशेष कर्तव्य एवं जिम्मेदारियां भी जुड़ी हैं।

याचिकाकर्ता विनीत जिंदल की याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया की पहुंच परंपरागत मीडिया से बहुत अधिक है।याचिका में देश में हुई साम्प्रदायिक हिंसा की उन कुछ घटनाओं का भी जिक्र किया गया है, जिनमें सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया गया था। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 25 जनवरी को उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) से जवाब मांगा था, जिसमें मीडिया, चैनलों और नेटवर्क के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई के लिए मीडिया न्यायाधिकरण गठित करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया कि मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, किसी बेलगाम घोड़े की तरह हो गया है, जिसे नियंत्रित किए जाने की जरूरत है।न्यायालय में मीडिया व्यवसाय नियमों से संबंधित संपूर्ण कानूनी ढांचे पर गौर करने और दिशानिर्देशों पर सुझाव देने के लिए भारत के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश या शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र समिति गठित करने की भी मांग की गई है।

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