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प्रीतम के सवालों को हरदा ने लिया सिर मत्थे !

  • कहा- मैं तो चुनाव ही नहीं लड़ना चाहता था, मुझे पार्टी ने पहले रामनगर फिर लालकुआं भेजा

देहरादून। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की ओर से उठाए गए सवालों का पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सधे हुए शब्दों के साथ जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि वह पहले ही सभी उम्मीदवारों की हार का उत्तरदायित्व अपने सिर ले चुके हैं। सभी को मुझ पर गुस्सा निकालने, खरी खोटी सुनाने का पूरा हक है।
हरीश ने कहा, प्रीतम सिंह ने एक बहुत सटीक बात कही कि आप जब तक किसी क्षेत्र में पांच साल काम नहीं करेंगे तो आपको वहां चुनाव लड़ने नहीं पहुंचना चाहिए। फसल कोई बोये, काटने कोई और पहुंच जाए। मैं भी मानता हूं कि यह उचित नहीं है। वह बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। जबकि स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में सदस्यों की राय थी कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए, नहीं तो इससे संदेश अच्छा नहीं जाएगा।
रावत ने कहा कि इस सुझाव के बाद उन्होंने रामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की। रामनगर उनके लिए नया क्षेत्र नहीं था। वर्ष 2017 में वे वहीं से चुनाव लड़ना चाहता थे। इस बार भी पार्टी ने जब रामनगर से उन्हें चुनाव लड़ाने का फैसला किया तो रामनगर से उम्मीदवारी कर रहे व्यक्ति को सल्ट से उम्मीदवार घोषित किया। सल्ट उनका स्वाभाविक क्षेत्र था और पार्टी की सरकारों ने वहां ढेर सारे विकास के कार्य करवाए थे। हरीश ने कहा कि रामनगर से चुनाव लड़ाने का फैसला पार्टी का था। उन्होंने तो रामनगर में कार्यालय भी चयनित कर लिया था। मुहूर्त निकालकर नामांकन का समय व तिथि घोषित भी कर दी थी। जब वह रामनगर के रास्ते में थे, तभी उन्हें सूचना दी गई कि वह रामनगर नहीं लालकुआं से चुनाव लड़ेंगे। यह भी पार्टी का सामूहिक फैसला था। उन्होंने न चाहते हुए भी फैसले को स्वीकार किया। हरीश ने कहा कि लालकुआं पहुंचने पर उन्हें लग गया था कि परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं।
उन्होंने इस बारे में अपने लोगों से परामर्श किया और अगले दिन नामांकन न करने का फैसला लिया। इसकी सूचना पार्टी प्रभारी को भी दी गई। इसके बाद उन्होंने कहा कि यदि वह ऐसा करते हैं तो इससे पार्टी की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। इसके बाद उन्होंने न चाहते हुए भी 27 तारीख को नामांकन किया। हरीश ने कहा कि वह प्रीतम सिंह की बात से सहमत हैं, लेकिन यदि वह सार्वजनिक बहस के बजाय पार्टी के अंदर विचार मंथन करेंगे तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगेगा।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था, इसकी जांच होनी चाहिए। उनका उस व्यक्ति के नामांकन से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। क्योंकि वह व्यक्ति कभी भी राजनीतिक रूप से उनके नजदीक नहीं रहा। उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं। उसे किसने सचिव बनाया, फिर महासचिव बनाया और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में उसे किसका समर्थन हासिल था। यह सब जानते हैं। उस व्यक्ति के विवादास्पद मूर्खतापूर्ण बयान के बाद मचे बवाल के दौरान उसे हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा का प्रभारी बनाने में किसका हाथ था, यह भी अपने आप में जांच का विषय है।

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