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उत्तराखंड : सियासत को जागीर मानने वाले ‘पुत्र मोह’ के शिकार!

अब भाजपा नेता खुद इसी राह पर

  • वर्ष 2017 के विस चुनाव में बहुगुणा और आर्य  ने शर्तों के साथ पुत्रों को दिलाया था टिकट
  • परिवारवाद की कथित विरोधी भाजपा के चार विधायक अगले चुनाव में बेटों को सौंपना चाह रहे विरासत

देहरादून। भाजपा में खुलेआम कांग्रेस पर परिवारवाद में जकड़े होने का आरोप लगाया जाता रहा है पर तमाम मौकों पर इस पार्टी में भी इसे ही तरजीह दी जाती रही है। उत्तराखंड में भी तीन से चार विधायक चाहते हैं कि 2022 में उनके बेटों को टिकट मिल जाए। अहम बात यह भी है कि एक काबीना मंत्री और एक पूर्व मुख्यमंत्री इस मामले में वक्त से पहले ही बढ़त ले चुके हैं।
सियासत का दस्तूर रहा है कि पार्टी कहती कुछ और हैं और वक्त आने पर करती कुछ और है। ऐसा ही एक मामला सियासत में परिवारवाद को बढ़ावा देने का है। यूं तो भाजपा इसकी मुखर विरोधी है पर कई मौके पर अपनी ही लाइन को खुद ही तोड़ती भी रही है। देशभर में इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। अब ऐसा ही कुछ मामला उत्तराखंड भाजपा में भी दिख रहा है। एक नेता जी अपने पुत्र को विधायक बनवा चुके हैं तो तीन से चार नेता भी इसी राह पर हैं।
जिंदगीभर कांग्रेस की राजनीति करने वाले काबीना मंत्री यशपाल आर्य ने 2017 में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन इस शर्त पर थामा था कि उनके पुत्र संजीव को भी टिकट दिया जाएगा। परिवारवाद की विरोधी भाजपा ने उनकी शर्त के सामने घुटने टेक दिये। पिता यशपाल बाजपुर और पुत्र संजीव नैनीताल से भाजपा के टिकट पर विधायक चुन लिए गए। इसी तरह से पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने अपना टिकट अपने पुत्र सौरभ को दिलवा दिया और वह भी भाजपा के टिकट पर सितारगंज से विधायक चुन लिए गए।
आगामी विस चुनाव में भी कई नेता चाहते हैं कि वे अपनी बढ़ती उम्र के चलते अपनी सियासत की विरासत पुत्रों को सौंप दे। इसके लिए वे पार्टी से यह भी कह रहे हैं कि उन्हें य़शपाल की तरह दो टिकट नहीं चाहिए। पर उनकी विस का टिकट पार्टी के किसी अन्य कार्यकर्ता को न देकर उनके पुत्र को दिया जाए।
इस मामले में पहला नाम हरबंस कपूर का बताया जा रहा है। यूपी के समय से कोई चुनाव न हारने वाले कपूर का अपने क्षेत्र में एक अलग रसूख हैं। हरबंस देहरादून की कैंट विस सीट से विधायक हैं। वह 75 से ज्यादा बसंत देख चुके हैं और अब चाहते हैं कि उनके विस क्षेत्र का टिकट उनके पुत्र अमित कपूर को दे दिया जाए। अमित यूं तो सियासत में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। पर पिता को लगता है कि बेटा उनके नाम पर जीत जाएगा। हालांकि एक अहम बात यह भी है कि अमित को टिकट मिलने की राह में छात्रवृत्ति घोटाला एक बाधा बन सकता है।
इसी तरह कालाढूंगी सीट से विधायक और मौजूदा काबीना मंत्री बंसीधर भगत की गिनती भी कद्दावर नेताओं में होती है। यूपी के समय अब तक कई बार विधायक और मंत्री रह चुके हैं। पहले हल्द्वानी सीट से चुनाव लड़ते थे। ये नेता जी भी ढलती उम्र के ऐसे पड़ाव पर हैं और चाहते हैं कि उनका बेटा विकास भगत उनकी सियासी विरासत संभाल ले। बताया जा रहा है कि भगत अपने बेटे के लिए 2022 में हल्द्वानी सीट से टिकट चाहते हैं।
सबसे अलग मामला काशीपुर सीट से विधायक हरभजन सिंह चीमा का है। वर्ष 2002 के पहले चुनाव में चीमा ने भाजपा को शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन के तहत टिकट दिया था। वह उस समय उत्तराखंड अकाली दल के अध्यक्ष थे। फिर 2007, 2012 और 2017 में भी अकाली कोटे से उन्हें टिकट दिया गया। वह लगातार भाजपा के टिकट पर जीतते रहे। कृषि कानून पर जहां अकाली दल ने भाजपा ने नाता तोड़ लिया पर चीमा ने तराई के किसानों के लिए कुछ नहीं किया और विधायक बने रहे। अब चीमा चाहते हैं कि उनके पुत्र त्रिलोक को काशीपुर से भाजपा का टिकट दिया जाए। चंद रोज पहले वह इसका केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट के सामने इजहार भी कर चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि रामनगर सीट से विधायक दीवान सिंह बिष्ट भी चाहते हैं कि 2022 के चुनाव में भाजपा का टिकट उनके पुत्र को दिया जाए। अब देखना यह है कि भाजपा   ‘पुत्र मोह’ में फंसे इन नेताओं की हसरत को आगामी विस चुनाव में कितनी तवज्जो देती है।

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