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तो ये महान शख्सियत हैं, उत्तराखंड के असली रेल पुरुष…

मंत्री बने बिना भी सांसद ने उत्तराखंड को दिया महत्वपूर्ण तोहफा

  • पूर्व सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन दिलाने में भी निभाई अग्रणी भूमिका
  • भगतदा याचिका समिति में ना होते तो अधूरा ही रह जाता कर्णप्रयाग रेल का सपना

देहरादून। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन और वन रैंक वन पेंशन जैसे बड़ी कामों का श्रेय लेने के लिए हमेशा राजनीतिक दलों में होड़ रहती है। यही नही नेता भी इस तिकड़म में लगे रहते हैं फलानी योजना लाने का श्रेय उनको मिले। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर उत्तराखंड के विकास की सबसे बड़ी लाइफ लाइन बनने वाली ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का रास्ता कैसे साफ हुआ और किन लोगों का इसमें सबसे बड़ा योगदान है।
आमतौर पर हम में से कोई भी यह कह देता है कि अरे फला प्रोजेक्ट या फलानी योजना तो फलां व्यक्ति लाया था, लेकिन हम लोग इस बात को इतनी गहराई से नहीं जानते कि ये प्रोजेक्ट आए कैसे।
विशेषकर ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन और पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन की बात करें तो इसका श्रेय उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी जी को जाता है। यह हम नहीं कह रहे, यह कहना है देश के वरिष्ठतम आईएएस ऑफिसर योगेंद्र नारायण का। योगेंद्र नारायण उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहने के साथ ही केंद्र सरकार में रक्षा सचिव, उद्योग सचिव और राज्यसभा के महासचिव जैसे प्रतिष्ठित पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। केंद्र सरकार के अहम पदों पर सेवाएं देने वाले योगेंद्र नारायण ने खुद लिखा है कि उत्तराखंड के रेल प्रोजेक्ट का पूरा श्रेय भगत सिंह कोश्यारी जी को जाना चाहिए। उन्होंने यह बात एक किताब की प्रस्तावना में लिखी है। लेकिन रोचक बात यह है कि इतने बड़े काम करने के बाद भी कभी भगत सिंह कोश्यारी ने इनका श्रेय लेने के लिए ना तो किसी तरह की तिकड़म की और ना ही कोई ऐसा ढोल पीटा। यही शायद उनकी राजनीति का एक सबसे बड़ा गुण भी है।

432 पृष्ठ की उक्त किताब चाणक्य वार्ता प्रकाशन समूह नई दिल्ली ने प्रकाशित की है और इसके लेखक हैं डॉ. अमित जैन। इस किताब की 3 पेज की भूमिका योगेंद्र नारायण ने लिखी है। उन्होंने क्या लिखा है हम हूबहू उन्हीं के शब्दों में इस स्टोरी को आगे बढ़ा रहे हैं।

भगत दा के नाम से प्रसिद्ध श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के जीवन और भाषणों को देखकर शेक्सपियर की एक कहावत याद आती है-‘कुछ लोग पैदा ही महानता के साथ होते हैं, कुछ लोग महानता प्राप्त करते हैं, और कुछ लोगों को महानता के साथ नवाज़ा जाता है। ‘

जब कोश्यारी जी का जन्म हुआ था, तब वे महान नहीं थे। उनका जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक गाँव के साधारण से परिवार में हुआ था, लेकिन उत्तराखंड में दूर-दराज के इलाकों में रह रहे गरीब लोगों की स्थिति सुधारने के अपने प्रयासों से उन्होंने महानता हासिल की। महाराष्ट्र के राज्यपाल जैसे महान पद पर नियुक्ति के बावजूद आज भी वे जब-जब अपने गांव जाते हैं, तब-तब पैदल ही वहाँ के गाँवों का दौरा करते हैं। कोश्यारी जी के भाषण गाँव वालों के लिए आशा की किरण लेकर आते हैं, और उन्हें आश्वासन देते हैं कि उनका ख्याल रखने वाला भी कोई है।

नारायणन आगे लिखते हैं “राजनीति में उनकी शुरुआत उत्तर प्रदेश की विधान परिषद और उत्तराखंड की विधान सभा के गलियारों से हुई। उन्हें संसद के दोनों सदनों, राज्य सभा और लोक सभा में काम करने का मौका मिला, जहाँ उनके द्वारा दिए गए दिल को छू जाने वाले भाषणों ने उन्हें काफी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनके भाषण उनकी सादगी तथा पूरे देश और उत्तराखंड की समस्याओं के बारे में उनकी जागरूकता को दर्शाते हैं। वे अपने भाषणों में केंद्र सरकार से पर्यावरण और वनों के संरक्षण में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की दरख्वास्त करते हैं, जिससे पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम झलकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रकृति के कहर से समय-समय पर रूबरू होते रहते हैं, इसीलिए उन्हें यह भी लगता है कि केंद्र सरकार को पहाड़ी क्षेत्रों के विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। एक समय पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री होने के नाते, उन्हें वहाँ की वित्तीय परेशानियों/स्थिति की जानकारी भी थी। इसीलिए वे सरकार से उत्तराखंड के लिए खास वित्तीय प्रबंध के लिए लगातार अनुरोध करते रहे।
कोश्यारी जी उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की समस्याओं से भी पूरी तरह अवगत थे। उन्होंने उस पूरे इलाके का पैदल दौरा किया और इन गाँवों में चीनियों के अतिक्रमण का मुद्दा उठाया। उन्होंने इन मुद्दों को संसद में उठाया और इन्हें केंद्र सरकार की नजरों में लेकर आए। उनकी इस वाक् कला के कारण ही उनके भाषण तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के सदस्य भी बड़े ध्यान से सुना करते थे।
उनके सभी भाषण उनके अपने अनुभवों पर आधारित हुआ करते थे । साथ ही उनमें उनके नेक विचार और रचनात्मकता झलकती थी। वे संसद की याचिका समिति की अपनी अध्यक्षता के समय सशस्त्र बलों में कार्यरत लोगों की ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के मुद्दे को उजागर करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने इसकी पुरजोर वकालत की और आज इस मुद्दे को सही दिशा में जाते हुए देखकर उन्हें काफी संतुष्टि होती होगी। इसके लिए उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
उत्तराखंड में रेल व्यवस्था विस्तार का श्रेय भी कोश्यारी जी ही जाना चाहिए। वे उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने उत्तराखंड में रेल व्यवस्था के विस्तार का मुद्दा उठाया। उनकी याचिका समिति द्वारा इसके लिए काफी जोरदार सिफारिश की गई थी। आज इस मुद्दे पर काम किया जा रहा है और इसके लिए कोश्यारी जी का धन्यवाद करना चाहिए।

इसी तरह याचिका समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने पहाड़ों में जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुचित मंजूरी के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसानों की जांच की। उन्होंने इन सभी योजनाओं पर पुनर्विचार करने का अपना पक्ष काफी मजबूती से रखा। हम आज भी इन परियोजनाओं के कारण होने वाली जान-माल की हानि देख सकते हैं, क्योंकि यह परियोजनाएं अभी भी चल रही हैं। कोश्यारी जी की सलाह को अगर गंभीरता से लिया गया होता तो यह सब न होता।
कोश्यारी जी एक साधारण व्यक्ति हैं और उनके भाषण बिना किसी विद्वेष के उनकी सादगी को दर्शाते हैं। इस तरह वे उन्हें नवाजी गई महानता के अधिकारी हैं। देश को कोश्यारी जी जैसे और राजनेताओं की आवश्यकता है। चाणक्य वार्ता प्रकाशन समूह द्वारा जिस प्रकार इस महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है, उसके लिए मैं प्रकाशन को हार्दिक बधाई देता हूँ।

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