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…तो उत्तराखंड में फिर ‘रावत’ ही बनेगा सीएम!

नई दिल्ली/देहरादून। एक बड़ी खबर आ रही है कि उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री बदला जा सकता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह इसी साल मार्च में तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया था. अब जबकि राज्य में विधानसभा चुनाव होने में एक साल का वक्त भी नहीं रह गया है, ऐसे में भाजपा एक बार फिर सीएम बदलने के मूड में दिख रही है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के बाद अब भाजपा के वरिष्ठ नेता सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को भी दिल्ली बुलाया गया है। ग्राउंड लेवल पर मिल रहे फीडबैक को देखते हुए नेता दिल्ली तलब किए गए हैं। इससे कयास लगाये जा रहे हैं कि उत्तराखंड में भाजपा का मुख्यमंत्री कोई ‘रावत’ ही बनाया जा सकता है। हालांकि सूत्रों ने दावा किया है कि भाजपा उत्तराखंड में इतिहास दोहरा सकती है। जैसे जनरल खंडूड़ी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक और फिर निशंक को पैदल कर कमान खंडूड़ी को थमा दी गई थी।  
भाजपा आलाकमान द्वारा अचानक दिल्ली तलब किए जाने से उत्तराखंड में अटकलों का बाजार गरम है। दिल्ली में करीब 10 घंटे इंतजार करने के बाद बुधवार आधी रात को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की मुलाकात गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ हुई थी, लेकिन इसके बाद से सस्पेंस और अटकलों का दौर जारी है क्योंकि तीरथ रावत को गुरुवार शाम तक उत्तराखंड लौटना था, मगर अचानक उनकी वापसी टाल दी गई है। सूत्रों के मुताबिक मुलाकात लगभग एक घंटा चली। इसके बाद सीएम दिल्ली स्थित अपने आवास पर लौट गए, लेकिन मुलाकात में क्या बातें हुईं, ये किसी को मालूम नहीं। इस तरह भाजपा से जुड़े अहम सियासी फैसले दिल्ली दरबार में अटके हुए हैं। सबकी निगाहें दिल्ली पर लगी हैं।
मीडिया में कई खबरों के बीच बड़ी संभावना यह जताई जा रही है कि उत्तराखंड में चुनावों के मद्देनज़र एक बार फिर नेतृत्व बदला जा सकता है। सूत्रों के हवाले से यह खबर आग की तरह फैल रही है कि तीरथ सिंह रावत सीएम के पद पर कुछ ही दिनों के मेहमान और हैं। चर्चा यह भी है कि दो-तीन दिन में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है। इस बड़े फैसले को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। यह बड़ा फैसला क्या है, इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा।
दिलचस्प बात यह है कि इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इस वक्त काफी सक्रिय हैं। कुमाऊं दौरे से लौटने पर दून में उनके जोरदार स्वागत समारोह की पार्टी में खूब चर्चा है। उधर सीएम तीरथ को सितंबर से पहले उपचुनाव लड़ना है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण निर्वाचन आयोग द्वारा उप चुनावों पर रोक से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मुख्यमंत्री को दिल्ली में रोके रखने से यह जाहिर है कि तीरथ के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए जरूरी विधानसभा उप चुनाव में कोई पेंच फंस रहा है। इसे सुलझाने के लिए बीजेपी हाईकमान उप चुनाव से लेकर नेतृत्व में बदलाव जैसे तमाम विकल्पों पर विचार कर रहा है।
इससे पहले चिंतन बैठक के तुरंत बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दिल्ली तलब किया गया था। सीएम तीरथ को आज देहरादून जाना था लेकिन उनका कार्यक्रम रद्द हो गया और वह दिल्ली में ही है। अब कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को भेज दिल्ली बुलाया गया है। उत्तराखंड भाजपा में अंदरखाने क्या कोई ‘खिचड़ी’ पक रही है? क्या उत्तराखंड  में अंदर खाने सब कुछ ठीक है? वक्त आने पर यह पता चल जाएगा। तीरथ के दिल्ली बुलावे के बाद सियासी गलियारों में फिर से चर्चा तेज हो गई है कि भाजपा आलाकमान फिर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदल सकती है। बताया जा रहा है कि भाजपा अगले साल उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव तीरथ सिंह की अगुआई में लड़ने के मूड में नहीं है। इसके अलावा तीरथ सिंह संवैधानिक अड़चनों में भी उलझे हैं।
बताया जा रहा है कि शाह और नड्डा ने उत्तराखंड में लीडरशिप और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर ही चर्चा को केंद्र बिंदु बनाया।
सूत्रों के अनुसार भाजपा आलाकमान नहीं चाहता कि ये चुनाव तीरथ की अगुआई में लड़ा जाए। दिलचस्प बात यह है कि उत्तराखंड के दिग्गज भाजपाई भी इस पक्ष में नहीं हैं। भाजपा की परेशानी ये है कि चुनाव से ऐन पहले उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने से फजीहत हो सकती है, पर भाजपा चुनाव हारने का खतरा भी मोल नहीं ले सकती। इससे पहले भी वर्ष 2012 में भाजपा ने चुनाव से ऐन पहले रमेश पोखरियाल निशंक को हटाकर बीसी खंडूरी की चीफ मिनिस्टर बनाया था। हालांकि भाजपा तब चुनाव हार गई थी।
उसकी रणनीतिक सोच को देखते हुए कहा जा रहा है कि भाजपा इस बार भी जल्द ही सीएम का चेहरा बदल सकती है। सूत्रों ने उत्तराखंड के वरिष्ठ भाजपा नेता का हवाला देते हुए दावा किया कि उन्होंने पार्टी आलाकमान के सामने ये कहा है कि अधिकांश विधायक उनके साथ हैं। ऐसे में पार्टी नेताओं के बीच मतभेद के साथ चुनाव में नहीं उतर सकती।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब संविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना होगा, तभी वो CM रह पाएंगे। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायकी जीतनी होगी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ेंगे। आम आदमी पार्टी ने तो यहां उनके खिलाफ अपना कैंडिडेट कर्नल अजय कोठियाल को घोषित दिया है।
सूत्रों ने बताया कि उत्तराखंड उपचुनाव को लेकर अभी भी चुनाव आयोग को फैसला करना बाकी है। सूत्र ने कहा कि ये चुनाव कोरोना संक्रमण के हालात पर ही निर्भर करते हैं। हालांकि, अभी इसके लिए तीरथ सिंह रावत के पास करीब-करीब दो महीने का समय है।उत्तराखंड में अभी गंगोत्री और हल्द्वानी सीटें खाली हैं। रिपोर्ट के मुताबिक तीरथ को गंगोत्री से लड़ाया जा सकता है। पर तीरथ सिंह के मन में है पौड़ी गढ़वाल। वो वहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं और वहां के विधायक ने भी ये कहा है कि वे सीट खाली करने को तैयार हैं। अभी समय भी है, पर कोरोना के हालात देखते हुए चुनावों को लेकर सवाल है।
हालांकि पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट 1951 के मुताबिक अगर विधानसभा का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है या फिर चुनाव आयोग केंद्र से ये कह दे कि इतने समय में चुनाव कराना मुश्किल है, तो ऐसे में उप-चुनाव नहीं भी कराए जा सकते हैं। इस एक्ट के तहत चुनाव आयोग के पास ही ये अधिकार है कि चुनाव की जरूरत है या नहीं, वह तय करे। 1999 में ओडिशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग थे। तब भी विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचा था, पर चुनाव आयोग ने तब उप-चुनाव कराए थे।
इस समय देश में 25 विधानसभा, 3 लोकसभा और 1 राज्यसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इनमें 6 उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि हम कोविड की वजह से चुनाव नहीं करा सकते। ऐसे में अगर एक सीट के लिए उत्तराखंड में उपचुनाव होता है तो सवाल उठेगा ही।
उत्तराखंड के कांग्रेस नेता नवप्रभात ने भी पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट का ही हवाला देते हुए कहा है कि जब विधानसभा चुनाव एक साल के भीतर होने हैं तो उप-चुनाव नहीं कराए जा सकते। ऐसे में भाजपा के पास मुख्यमंत्री बदलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि ये भाजपा का अंदरूनी मसला है और मैं इस पर कमेंट नहीं करना चाहता, पर तीरथ सिंह रावत दिल्ली तो अचानक ही गए हैं।

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