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मध्य प्रदेश के विदिशा में सेंट जोसेफ़ स्कूल पर ‘हिन्दूवादियों’ ने हमला क्यों किया?

मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िले के गंजबसौदा के सेंट जोसेफ़ स्कूल में हुए हमले के निशानों को दो दिन के बाद भी देखा जा सकता है. दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों पर कथित धर्मपरिवर्तन का आरोप लगा कर सोमवार को स्कूल पर हमला करने का आरोप है.

सेंट जोसेफ स्कूल में लगभग 500 लोगों की भीड़ ने आठ बच्चों के कथित धर्मपरिवर्तन का आरोप लगाकर हमला कर दिया था. आरोप है कि हमला करने वाले विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल जैसे संगठनों के थे. इस मामलें में चार लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. जिस वक़्त स्कूल में हमला किया गया उस वक़्त वहाँ पर 12वीं की परीक्षा चल रही थी.

गंजबसौदा ज़िला मुख्यालय विदिशा से लगभग 50 किलोमीटर दूर है. वही प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मंगलवार को कहा है कि सरकार ऐसे लोगों की जाँच करवा रही है जो धर्म परिवर्तन जैसी गतिविधियों में शामिल रहे हैं.

स्कूल के प्रिंसिपल ब्रदर एंटनी ने बताया कि धर्मांतरण का आरोप सरासर झूठा है और उसका स्कूल से कोई लेना देना भी नही है.

उन्होंने बताया, “चर्च में ईसाई समाज का कार्यक्रम हुआ था जो कि यहाँ से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है. यह कार्यक्रम में 31 अक्टूबर को हुआ था और इसमें ईसाई समाज के बच्चे ही मौजूद थे.”

ब्रदर एंटनी ने बताया कि इस कार्यक्रम की फ़ोटो सागर डायसिस के न्यूज़ पेपर में छपी थी. उसके बाद उस फोटो का इस्तेमाल करके एक स्थानीय यू टूयूब चैनल ने आरोप लगाया कि छोटे बच्चों का धर्मातरण कराया गया है.

यह मामला लगातार स्थानीय स्तर पर उठता रहा और सोशल मीडिया पर इसको लेकर मुहिम शुरू हो गई. वहीं, वीएचपी और बजरंग‎ दल जैसे संगठनों ने प्रदर्शन और घेराव का ऐलान कर दिया.

ब्रदर एंटनी ने आगे बताया कि हिंदू संगठनों के इकठ्ठा होकर स्कूल में विरोध करने के बारे में उन्हें पाँच दिसंबर की शाम को पता चला, जिसके बाद उन्होंने जिले के तमाम बड़े अधिकारियों को बताया. पुलिस ने उन्हें इस बात का आश्वासन दिया कि उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी.

लेकिन सोमवार 6 दिसंबर को संगठन के लोग इकठ्ठा हुए और उन्होंने स्कूल में पहुँचकर हमला बोल दिया. प्रदर्शनकारी दीवार फांदकर‎ स्कूल में घुस गए. उन्होंने रखे सामान का काफ़ी नुकसान पहुँचाया. स्कूल परिसर में खड़ी कार के साथ ही कुर्सी और गमले को नुक़सान पहुँचाया गया. वही स्कूल में कई शीशों को भी तोड़ डाला गया. तब 12वीं के बच्चें परीक्षा दे रहे थे. स्कूल प्रबंधन का दावा है कि बच्चे काफ़ी डर गए थे.

स्कूल प्रिंसिपल का कहना है, “पहले वो सामने वाले गेट से अंदर घुसे और तोड़फोड़ शुरू कर दी. उस वक़्त गिने-चुने पुलिस वाले थे जो उन्हें रोक नही सकती थे. उसके बाद जब उन्होंने दूसरा गेट तोड़ने की कोशिश की तब पुलिस बल पहुँचा और उन्होंने लोगों को भगाया.”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि समय रहते पुलिस को बता दिया गया था लेकिन हमाला शुरू होने के समय सिर्फ़ चार पुलिस वाले मौजूद थे.

वही ब्रदर एंटनी का कहना है कि जिन बच्चों को चर्च में फस्ट होली कम्युन के लिए इकठ्ठा किया गया था, वे ईसाई थे और उनका स्कूल से कोई लेना देना नही था.

पुलिस ने इस मामलें में अभी तक सिर्फ़ चार लोगों को हिरासत में लिया है. गंजबसौदा के एसडीओपी (सब डिविजनल आफिसर पुलिस) भारत भूषण शर्मा ने बताया, “इस मामलें में हमने चार लोगों पर मामला दर्ज किया है. इसके अलावा अज्ञात लोगों पर भी मामला दर्ज किया गया है.”

उन्होंने आगे बताया कि इस मामले में जांच जारी है और देखा जा रहा है कि कौन-कौन शामिल था. वहीं भारत भूषण शर्मा ने इस बात से इनकार किया है कि प्रशासन ने इस मामलें में पर्याप्त पुलिस बल उपलब्ध नही कराया, जिसकी वजह से यह घटना घटी.

वही हिंदू संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि जिन्होंने तोड़फोड़ की वो लोग उनके संगठन से नही थे बल्कि असामाजिक तत्व थे.

विश्व हिंदू परिषद् से जुड़े नीलेश अग्रवाल ने बताया कि उन्हें धर्मान्तरण की जानकारी मिली थी.

उन्होंने कहा, “शिक्षा के मंदिर में धर्मांतरण से सामाजिक संगठनों में नाराज़गी थी. हमने घेराव किया. वहीं हमने उन बच्चों के नाम सार्वजनिक करने की मांग की, जिनका धर्म परिवर्तन कराया गया है.”

नीलेश अग्रवाल ने यह भी आरोप लगाया है कि पूर्वोतर के राज्यों से बच्चों को चर्च में लाया जा रहा है.

उन्होंने आगे बताया, “जो घटना घटी वो जनता में आक्रोश की वजह से हुई. हमारा प्रदर्शन लोकतंत्रिक था. इसमें कुछ असामाजिक तत्व घुस आए थे, जिनका संबंध हम से नही था.”

नीलेश अग्रवाल ने कहा कि इस मामलें में सबसे पहले संज्ञान राष्ट्रीय बाल आयोग ने लिया था.

इस मामलें के सामने आने के बाद 24 नवंबर को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने एक चिट्ठी लिख कर इस मामले की जाँच के लिए कहा था.

वहीं मिशनरी स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षक वसुधा शिवंकर का कहना है कि इस स्कूल की शुरुआत 2008 में हुई थी, तभी से वो पढ़ा रही हैं और उन्होंने कभी ऐसा महसूस नही किया है कि यहाँ पर कुछ ग़लत हो रहा है.

उन्होंने बताया, “जिस तरह से यह हमला किया गया यह बहुत ही शर्मनाक है. जिन लोगों ने यह हमला किया है, शायद उनके भी बच्चे उस समय स्कूल में होगें और वो भी परीक्षा दे रहे होगें. लेकिन उन्होंने भी महसूस नहीं किया कि वो कितना ग़लत काम कर रहे है.”

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