- एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल संगठन जैसी कई संस्थाएं बिना नाम बताए कर रहीं काम
नई दिल्ली। ‘पिछले करीब 10 सालों से मैं ऊहापोह में थी। इस्लाम को लेकर मेरे भीतर सवाल ही सवाल थे। कुछ साल पहले पैगंबर मोहम्मद की ऑटोबायोग्राफी पढ़ी। किताब के पन्ने जैसे-जैसे मैं पलटती गई, वैसे-वैसे मेरा इरादा पक्का होता गया। दरअसल उस किताब में दासता और औरतों को लेकर जो बातें लिखी गई हैं। वह मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाती हैं। पैगंबर का व्यक्तिगत जीवन खुद इंसानी पैमाने पर खरा नहीं उतरता। मैंने आखिरकार पिछले दिसंबर में मस्जिद जाकर इस्लाम छोड़ने का ऐलान कर दिया।’
यह कहानी अकेले केरल की आयशा मर्केराउज की नहीं बल्कि ऐसे कई लोगों की है जिन्होंने इस्लाम छोड़ दिया। इस्लाम छोड़ने के बाद क्या परिवार और समाज में रहना आसान होता है? आयशा कहती हैं मेरे घर वाले बातचीत तो करते हैं, पर हां, अब पहले जैसा सब कुछ तो नहीं है। मैं दिल्ली में हूं तो वहां की सोसाइटी से मेरा बहुत ज्यादा वास्ता नहीं है, पर वहां रहकर यह सब करना बेहद कठिन होता।
इन दिनों केरल में एक संगठन चर्चा में बना हुआ है। ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल’ नाम के इस संगठन के प्रेसिडेंट डॉक्टर आरिफ हुसैन थेरुवथ कहते हैं, ‘पिछले एक साल में केरल में 300 लोगों के नाम दर्ज हुए जिन्होंने इस्लाम छोड़ा। हालांकि रजिस्टर्ड आंकड़ों के इतर करीब 2000 लोग हमारे संपर्क में हैं जो इस्लाम छोड़ चुके हैं। ऐसे भी बहुत लोग होंगे जो हमारे संपर्क में नहीं आ पाए हैं।’
डॉ. आरिफ कहते हैं, ‘लोग इसलिए अपनी पहचान छिपा कर रखते हैं, क्योंकि सोसाइटी ऐसे लोगों को काफिर (नास्तिक) और अनैतिक करार दे देती है। यही नहीं, उस शख्स का बहिष्कार किया जाता है। प्रॉपर्टी समेत तमाम तरह के अधिकार उससे छीन लिए जाते हैं। परिवार उसे छोड़ देता है। उसे तरह-तरह से प्रताड़ना दी जाती है। शारीरिक, सामाजिक और मानसिक हर तरह का अत्याचार किया जाता है।’
इस संगठन के प्रेसिडेंट डॉ. आरिफ दावा करते हैं कि केरल में यह संस्था पहली बार खुलकर सामने आई है, लेकिन काम करीब 10 साल से चल रहा है। पूरे भारत में भी ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ इंडिया’ नाम से यह संस्था चल रही है। यह संगठन अभी छिप-छिपाकर काम करता है, पर जल्द ही केरल की तरह पूरे भारत में इस संगठन को पहचान के साथ सामने लाया जाएगा। फिलहाल तमिलनाडु में इस संगठन के रजिस्ट्रेशन का काम जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। डॉ. आरिफ कहते हैं कि वैसे तो हर धर्म नास्तिक समुदाय के साथ भेदभाव करता है, लेकिन इस्लाम इस मामले में कट्टर है। जो लोग इस्लाम छोड़ देते हैं, लोग उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं। वे यह भी कहते हैं कि पूरे भारत में हजारों लोग इस्लाम छोड़ चुके हैं, लेकिन खौफ की वजह से लोग खुलकर नहीं बोल रहे।
आरिफ का कहना है कि संगठन के तीन मकसद हैं, पहला कुरान में दर्ज बातों को डिकोड कर सबके सामने लाना। दूसरा, पैगंबर मोहम्मद को एक्सपोज करना। तीसरा, जो लोग इस्लाम छोड़ देते हैं। उन्हें मदद करना। ऐसे लोगों पर सामाजिक, आर्थिक और इमोशनल अत्याचार किया जाता है। हम उन्हें एक कम्युनिटी मुहैया करवाने के साथ कानूनी मामलों में मदद करते हैं। वह एक उदाहरण देकर समझाते हैं- जैसे कुरान के चैप्टर 4 की 34वीं आयत में पत्नी को पति द्वारा पीटे जाने को भी सही ठहराया गया है। तर्क दिया गया है कि अगर औरत का व्यवहार गलत हो जाए तो इसे राह में लाने के लिए यह तरीका बिल्कुल ठीक है।
डॉ. आरिफ का कहना है कि सवाल उठता है कि अगर अल्लाह ने औरत और आदमी दोनों को बनाया, तो पति का पत्नी को पीटना जायज कैसे है? इन सब बातों को हम लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं। दरअसल आम मुस्लिम तो इन सबके बारे में ठीक से जानता भी नहीं। आरिफ कहते हैं- इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद की बातों को पत्थर की लकीर मानते हैं, लेकिन अगर उनके जीवन को ध्यान से पढ़ें तो उनके अपने कैरेक्टर पर ही सवाल खड़े होते हैं।
एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल के वजूद और मकसद पर इस्लामिक स्कॉलर और मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं, ‘नास्तिक होना या आस्तिक होना निजी मामला है। सभी धर्मों में ऐसे लोग हैं। डिबेट के लिए मंच तैयार होने चाहिए, जहां इस्लाम के जानकार और उसे गलत कहने वालों के बीच डिबेट हो, लेकिन इस्लाम को कट्टर और औरतों के खिलाफ कहना सिवाय प्रोपेगेंडा के कुछ नहीं है।