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मप्र के ‘व्यापम‘ घोटाले जैसा ‘व्यापक‘ होता जा रहा यूकेएसएसएससी पेपर लीक घोटाला!

सिस्टम पर सवाल

  • एजेंसी का गाॅड फादर कौन और किसका मिल रहा सियासी वरद हस्त
  • लगातार गड़बड़ियों के बाद भी आयोग ने साधा मौन, नहीं लिया एक्शन

देहरादून। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पेपर लीक मामले में विजिलेंस जांच में रोज नई कहानियां सामने आ रही हैं और रोज कोई न कोई नई गिरफ्तारी हो रही है। जिससे लगता है कि यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामला मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले की तरह व्यापक रूप लेता जा रहा है। इस मामले में न्यायिक कर्मियों से लेकर सचिवालय तक हुई गिरफ्तारियों से यह आशंका सच में तब्दील होती जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि आयोग की परीक्षायें आयोजित कराने वाली आउटसोर्स एजेंसी पर किसी की निगाह नहीं है। लगातार गड़बड़िया सामने आने के बाद भी सरकार, आयोग या शासन ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया। चर्चा है कि इस एजेंसी पर सियासी लोगों का वरद हस्त है और इसकी जड़ें उत्तराखंड के कई विभागों में खासी गहरी हैं।
अगर आयोग के 2017 से अब तक के कामों पर नजर डालें तो साफ दिखेगा कि परीक्षाओं का आयोजन करने वाली आउटसोर्स एजेंसी आरएसएम टेक्नो सोल्यूशन हमेशा चर्चाओं में रही है। कई पेपर लीक हुए और अन्य तरह की गड़बड़ियां सामने आईं। लेकिन आयोग के कर्ताधर्ताओं ने कभी भी कोई सख्त एक्शन नहीं लिया और इसी से काम कराया जाता रहा और इस पूरे खेल में प्रदेश के युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया जाता रहा है।  
हालांकि ताजा पेपर लीक मामले में विजिलेंस एक दर्जन के करीब गिरफ्तारियां कर चुकी हैं। इनमें इस एजेंसी के कार्मिक भी शामिल हैं। इसके बाद भी विजिलेंस ने इस एजेंसी के मालिकों से कोई पूछताछ नहीं की। सीधे तौर दोषी होने के बाद भी आयोग ने भी इस एजेंसी को काली सूची में नहीं डाला। हां, दिखाने के लिए कहा गया कि अब एजेंसी को गोपनीय काम नहीं दिया जाएगा।

यह भी पढ़ें- यूकेएसएसएससी पेपर लीक केस में सचिवालय से अपर निजी सचिव गिरफ्तार

सूत्रों के अनुसार इस एजेंसी की उत्तराखंड में जड़ें खासी गहरी है। रसूखदार सियासी लोगों तक एजेंसी की सीधी पकड़ है। इसी वजह से इस एजेंसी के पास कई विभागों का काम है और आयोग या फिर विजिलेंस इस एजेंसी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रहा है। हालांकि एक विवि का काम देने के लिए निकाले गए टेंडर से यह एजेंसी बाहर हो गई है। अब इस एजेंसी के पैरोकार सियासी लोग इस टेंडर को ही निरस्त कराने की जुगत में जुट गए हैं।
अहम सवाल यह है कि युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही इस निजी एजेंसी के खैरख्वाह सियासी लोगों को उत्तराखंड के हितों की भी कोई परवाह नहीं है। जानकारों का कहना है कि अगर इस एजेंसी को भी जांच के दायरे में लिया जाए तो कई सफेदपोश लोगों के चेहरे से भी नकाब हट सकता है। अगर इस मामले में सही से जांच नहीं की गई तो इसका हश्र भी मप्र के व्यापम घोटाले की तरह होने की आशंका है और उत्तराखंड के युवा इस काले सच को कभी जान ही नहीं पाएंगे। अब देखना यह है कि धामी सरकार इस मामले की जड़ तक पहुंच पाती है या अन्य मामलों की तरह यह भी फाइलों में दफन हो जाएगा।   

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